सरसों की फसल में फूल आने के कारण इस मौसम में मधुमक्खियों को प्राकृतिक रूप से भरपूर भोजन मिल जाता है और ये अच्छे किस्म का शहद भी पर्याप्त मात्रा में तैयार करती हैं। इस साल ऐन मौके पर मौसम प्रतिकूल होने से कामगार मधुमक्खियां काम पर नहीं निकल सकीं और शहद बनाने का काम प्रभावित रहा।
कड़ाके की सर्दी का असर इंसान ही नहीं, बेजुबान पशु-पक्षी और कीटों पर देखा गया। लगातार 12 दिन तक तक धूप नहीं निकलने और शीतलहर के कारण लाखों मधुमक्खियों ने दम तोड़ दिया। इनमें खुले में छत्ता बनाकर रहने वाली मधुमक्खियाें के अलावा किसानों द्वारा पाली गईं मधुमक्खियां भी शामिल रहीं। भारी संख्या में मधुमक्खियों की मौत से किसानों को दोहरा नुकसान झेलना पड़ा।
मधु मिलने की उम्मीद कम
एक तरफ कामगार मधुमक्खियों के मर जाने से फूलों के सीजन में मधुमक्खी पालक किसानों को जहां 15 दिनों तक शहद नहीं मिल सका, वहीं भोजन की कमी और ठंड के कारण कमजोर हुई मधुमक्खियों ने शहद नहीं बनाया। इनसे धूप निकलने के पांच दिन बाद भी मधु मिलने की उम्मीद कम है। पहले ये खुद मजबूत होंगी इसके बाद शहद बनाने का काम करेंगी।
मधुमक्खी पालक सोमा सिंह एवं अन्य किसानों ने बताया कि कई दिनों तक धूप नहीं निकलने के कारण शहद के कारोबार को ठंड सा लग गया है। इस समय सरसों का सीजन है। इस सीजन से हम लोगों को काफी उम्मीद रहती है। सरसों की फसल में फूल आने के कारण इस मौसम में मधुमक्खियों को प्राकृतिक रूप से भरपूर भोजन मिल जाता है और ये अच्छे किस्म का शहद भी पर्याप्त मात्रा में तैयार करती हैं।
इस साल ऐन मौके पर मौसम प्रतिकूल होने से कामगार मधुमक्खियां काम पर नहीं निकल सकीं और शहद बनाने का काम प्रभावित रहा। इसके अलावा ठंड और भूख से काफी मधुमक्खियों ने दम भी तोड़ दिया। मधुमक्खियों को बचाने के लिए हजारों रुपये का भोजन देना पड़ा । कमाई के सीजन में दोहरा नुकसान झेलना पड़ा। मौसम खराब रहने से मधुमक्खियां काफी कमजोर भी हो गई हैं। अब धूप निकली है तो धीरे-धीरे यह मक्खियां बाहर निकलेंगी लेकिन अगले पांच दिनों तक इनसे अच्छे शहीद मिलने की उम्मीद कम ही है।
जानिए क्यों मरीं मधुमक्खियां
मधुमक्खियों के जिंदा रहने के लिए 34 से 35 डिग्री तक तापमान होना चाहिए। इससे कम या अधिक तापमान होना मधुमक्खियों के लिए हानिकारक है। इससे कम तापमान होने पर मधुमक्खियां गोला बनाकर तापमान का प्रबंधन करती हैं। गोला बनाने की स्थिति में रानी मक्खी तो सुरक्षित बच जाती है लेकिन बाहर की सतह पर रहने वाली मक्खियां ठंड के कारण बेसुध होकर मरने लगती हैं। इसके अलावा भोजन और मकरंद के लालच में ठंड में निकलीं मधुमक्खियाें को भी जान से हाथ धोना पड़ता है।
मधुमक्खियों का बचाने के लिए क्या करें
मधुमक्खी के बक्से को सीधी ठंढी हवा के संपर्क में न आने दें। काला पॉलीथिन लगाकर उसे ढंक दें। बक्से के बाहर और अंदर पैकिंग को ऐसे रखें कि बहुत अधिक खुला जगह न हो। जब मक्खियां काम पर न निकलें तो उनको चीनी का गाढ़ा घोल दें।
अधिकारी के अनुसार
वैसे तो मधुमक्खियां खुद ब खुद तापमान नियंत्रित कर लेती हैं पर कई बार अधिक ठंड होने के कारण उन मधुमक्खियों की जान चली जाती है जो तापमान नियंत्रण करने के लिए समूह द्वारा बनाए गए गोले में बाहरी परत पर रह जाती हैं। पालक किसान को रखरखाव पर ध्यान देना चाहिए। अब धूप निकलने लगी है तो कामगार मक्खियां काम पर निकलेंगी। खुद भी मजबूत होंगी और पराग मकरंद लाकर शहद कारोबार में जान भी फूकेंगी। एक दिन में रानी मक्खी दो हजार अंडे देती है ऐसे में कुछ दिनों में कामगार मधुमक्खियों की कमी दूर हो जाएगी। -डा. सुनीता यादव, कीट विशेषज्ञ, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार